संगति का प्रभाव पर निबंध | संगत का असर एक छोटी कहानी (Short Story in Hindi)

संगत का असर | कुसंगति का फल पर कहानी | संगत की कहानी

दोस्तो आज हम इस पोस्ट में संगति का असर (Sangati Ka Asar) कहानी के बारे में पढ़ेंगे |

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संगति का प्रभाव पर कहानी

दोस्तों हमारी संगती बहुत अछि होनी चाहिए जैसा हम साथ करंगे वैसे ही हम बनते चले जाते हैं | अगर हमारी संगती अछि पढाई करने वाले लोगों से है तो हमारा करिअर अच्छा होता चला जायेगा और यदि हम नशा करने वालों के साथ उठते बैठे हैं तो हम भी नशेड़ी बंद जाते हैं |

कहावत कही गयी है कि :

संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात, बांस, फांस और मिशरी – एक ही भाव बिकात।

जैसी हमारी संगत होती है वीएस हमारा विचार बनता चला जाता है|

संगति का असर (Sangati Ka Asar In Hindi)

समाज में जन्म लिया हर शख्स एक दूसरे से भिन्न है। जिस प्रकार दुनिया तेजी से बदल रही है उस प्रकार लोगों के बदलने की रफ्तार काफी धीमी है। हालांकि थोड़े से ही बदलाव कुछ लोग उसको बदलाव का नाम दे देते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आदमी कभी नहीं बदलता। बदलती है तो आदमी की सोच। लेकिन क्या आप जानते हैं व्यक्ति की सोच कैसे बदलती है और कब? तो इसका उत्तर है संगत।संगति का असर हर शख्स के जीवन में गहरा प्रभाव डालता है। आइए आपको एक कहानी के माध्यम से संगति का असर समझाते हैं।

व्यक्ति की संगत ही उसकी सोच में बदलाव लाती है। वह सोच ही उसको नकारात्मक या सकारात्मक दिशा की ओर लेकर जाती है। संगत अर्थात आप अपना अधिकांश समय किस व्यक्ति के साथ बिताते हैं। हर व्यक्ति का समाज को देखने का नजरिया अलग है। वो कहते हैं न “एक बुरी मछली पूरे तालाब को गंदा करने की क्षमता रखती है”। यही मुहावरा इंसान के ऊपर भी लागू होती है। कोई भी शख्स अपने आसपास के व्यक्तियों की सोच एवं उनका व्यक्तित्व बदलने की क्षमता रखता है। अब कहानी के माध्यम से इस बात को आसानी से समझें।

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कहानी संगति का असर

यह कहानी की शुरआत होती है सुरेश नामक किरदार से। सुरेश के पापा हाल ही में प्रोमोशन हुआ जिसके कारण सुरेश का पूरा परिवार दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए। पहले वह पंजाब के एक छोटे से गांव में रहते थे लेकिन अब वह दिल्ली रहने आ गए। सुरेश की स्कूल की पढ़ाई अब खत्म हो गई थी और नया नया कॉलेज में दाखिला होने के लिए इछुक था।

दिल्ली में उनका घर एक बड़े से कॉलोनी में था। जहाँ सुरेश की दोस्ती 5 लड़को से हुई जो पहले से एक दूसरे को जानते थे। उनका नाम था रमेश, राहुल, विजय, मनप्रीत और संजय। इन पांचों की खासियत यह है कि यह पूरी कॉलोनी में सबसे शरारती बच्चों का ग्रुप है। लेकिन इस बात की सुरेश को कोई जानकारी नहीं थी।

सुरेश को वह पांचों अपनी अच्छी बातों में फसा चुके थे। सुरेश उन पांचों को अपना सबसे बेस्ट फ्रेंड मानने लगा था। सुरेश अपना आधे से ज्यादा समय इन्ही पांचों के साथ बिताता जिसके कारण उसकी आदतों में काफी बदलाव आ गया। एक दिन उसने रात के अंधेरे में जब उसकी मम्मी पापा चैन की नींद सो रहे थे उसने पापा के पर्स से छुपके से 100 रुपए का नोट चुरा लिया। दिन में उसने वह पैसों को खर्च कर दिया खाने पीने में।

ऐसा उसने हर दूसरे दिन किया उसे यह सब करना कूल लगता था। ऐसा उसने उन पांचों के कहने पर किया था। एक दिन जब सुरेश उन पांचों से मिलने कॉलोनी के ग्राउंड पहुंचा तो वह पांचों पार्टी करने में व्यस्त थे। सुरेश ने पूछा :- यार तुम इतना कुछ खा रहे हो, तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हे इतने पैसे दे देते हैं?। इस बात पर वह पांचों काफी जोर जोर से हंसने लगते हैं।

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वह कहने लगे कि मम्मी पापा से मांगने पर इतने पैसे नहीं मिलते हैं उनसे लेने पड़ते हैं यानी चोरी कर के आ। सुरेश ने पहले तो मना किया लेकिन उनके बार बार कहने पर मान गया, अब उसे यह करने में मजा आ रहा था। उसके पापा इस चोरी से वाकिफ थे और तंग भी आ चुके थे। उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए एक युक्ति निकाली उसके पापा ने इसमें अपने दोस्त को शामिल कर लिया। सुरेश के पापा के दोस्त ने पुलिस के वेश में आए और उसको पकड़के बोले सुरेश तुम्हे चोरी करने के जुर्म में पकड़ा जा रहा है।

उसने हालांकि यह चोरी की नहीं थी बल्कि यह चोरी की घटना हुई ही नहीं थी। लेकिन इस दृश्य ने सुरेश को डरा दिया। इसपर सुरेश के पापा उसे समझाते हुए कहते हैं कि मुझे पता है तुमने यह चोरी नहीं कि लेकिन तुमने मेरे पर्स से चोरी किया है। तुम अपने वह पांचों के बुरी संगत में फस चुके हो।

कहानी से सीख : जैसी हमारी संगत होती है वीएस हमारा विचार बनता चला जाता है, अतः हमे अछे दोस्त ही बनाने चाहिए |

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