तराइन का दूसरा युद्ध
भारत के इस पवित्र भूमि पर कई युद्ध हुए है और कई वीर जवान की रक्त से लतपत भी हुई है ये धरती। ऐसे ही कहानियों से भारत का इतिहास की किताब भरी है। भारत के इतिहास के पन्ने में एक पन्ना भी है जिसने पूरा भविष्य ही बदल के रख दिया भारत का। ये पन्ना गवाह है उस युद्ध का जिसने भारत में मुसलमानों की जगह बना दी। ये युद्ध थी मोहम्मद ग़ोरी और पृथ्वीराज तृतीय के बीच और ये युद्ध हुआ था 1192 ईसवीं में। इस युद्ध में राजपुतना साम्राज्य का अंत हुआ था और मुसलमानों ने भारत में अपनी गद्दी जमाई थी।
क्या था दूसरे युद्ध का कारन–
तराइन के पहले युद्ध में हार से तुर्की सम्राट पहले ही तिलमिलाया हुआ था और उसके अंदर बदले की आग भड़क रही थी। वह बस चाहता था अपने हार का बदला जिसके लिए उसने बड़ी सारी तैयारियां की। वो राजपुतना सम्राट पृथिवीराज चौहान पर चढ़ाई करने को तैयार था।
जब पृथ्वीराज को यह बात पता चली वो जरा भी घबराए नहीं बल्कि उन्होंने अपने सैनिकों को तैयार किया और अपने राजपूतों भाइयों को मदद के लिए प्रस्ताव भेजा पर कोई भी यह राजपूत सम्राट पृथ्वीराज की मदद नहीं करना चाहता था क्योंकि उन्होंने राजकुमारी संयोगिता का हरण करके कन्नौज से ले आए थे जिससे सारे सम्राट खफा थे और सबसे ज्यादा खफा कन्नौज के राजा जयचंद सिंह थे वह बस किसी तरह तरह चाहते थे की पृथ्वीराज का विध्वंस हो जाए और जब उन्हें पता चला कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने जा रहा है तो उन्होंने पृथ्वीराज का साथ ना देकर उनके विरुद्ध मोहम्मद गोरी का साथ दिया। और सारे राजपूत सम्राटों को भी भर का दिया कि वह पृथ्वीराज का साथ ना दे और इसलिए किसी भी राजपूत सम्राट ने पृथ्वीराज का सहायता नहीं किया। पर फिर भी पृथ्वीराज के इरादे डगमगाए नहीं वह अपने 300000 सेना ले कर के निकल पड़े मोहम्मद गोरी से लड़ने को और राजपूतों की शान बचाने को।
युद्ध की उद्घोषणा-
युद्ध शुरू हुआ भले ही मोहम्मद गौरी की सेना 120000 थी पर वह कुछ ज्यादा ही अनुशासित थे। मोहम्मद गौरी की सेना में उम्दा घुड़सवार थे अब जो बाण चलाने में उस्ताद थे। पर पृथ्वीराज की सेना उस समय सिर्फ हाथी के साथ युद्ध लड़ते थे जिस चीज का फायदा मोहम्मद गोरी ने उठाया। उसने अपने घुड़सवार को हर एक हाथी के चारों तरफ लगा दिया और वह सेनानी लगातार हाथी पर वार करते रहे अपनी तीर धनुष से।उनके तीर से राजपूतों के हथिया घायल हो गए। घायल हाथी दुश्मनों को ना हानि पहुंचा कर अपने ही सेना को रौंदने लगे थे।
ये युद्ध ऐसा था जहां पर सिर्फ अपने हठी थी सेना को नहीं रौंद रहे थे बल्कि राजपूत ही राजपूत भाइयों की जान ले रहे थे। क्योंकि जयचंद पृथ्वीराज के खिलाफ था और मोहम्मद गौरी के साथ था जिसकी वजह से दूसरी राजपूत सेना पृथिवीराज की सेना को खत्म करने में लगी थी। यह देखकर मोहम्मद गोरी का आत्मविश्वास और बढ़ता जाता। कम सेना होने के बावजूद वह चढ़ाई करता गया। इतनी मुसीबतों के बाद भी पृथ्वीराज पीछे नहीं हटे बल्कि डटकर मोहम्मद गोरी का सामना किया और उसे मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे।
एक चीज़ थी जो की पृथिवीराज के खिलाफ चली गयी वो ये थी कि पृथ्वीराज चौहान सूर्य ढलने के बाद युद्ध नहीं करते थे जो की महाभारत के समय से चला आ रहा था। पर मोहम्मद गोरी रात को भी वार किया करते थे और यह चीज मोहम्मद गोरी के पक्ष में चली गई। उसने अपने सेना के साथ मिलकर पूरी रात राजपूत सेनाओं का गला काटते रहे जिसके वजह से धीरे-धीरे पृथ्वीराज की सेना कम होती गयी और कमजोर पड़ती गई और अंत में पृथ्वीराज की हार हुई। जयचंद यह देखकर तो बहुत खुश था पर उससे पता नहीं था शायद किए खुशी चंद भर की है।
मोहम्मद गोरी ने जंग जीत कर पृथ्वीराज को बंदी बना लिया और उसका साम्राज्य भी उस से छीन लिया उसके बाद उसने कन्नौज के राजा जयचंद को भी बंदी बना लिया और जान से मार दिया। उसके बाद कन्नौज दिल्ली अजमेर तथा पूरे भारतवर्ष पर अपना कब्जा कर लिया। वह बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का गवर्नर बनाकर खुद तुर्की के लिए रवाना हो गया। इस युद्ध में तुर्की सेना विजय रही और राजपूतों का पराजय हुआ जिसके वजह से पूरे भारत वर्ष पर मुसलमानों का कब्जा हो गया। और यह युद्ध में हार का सबसे बड़ा कारण था अपनों का धोखा लोभ और लालच के कारण जयचंद सिंह ने अपने ही भाइयों के विरुद्ध जाकर मोहम्मद गोरी का साथ दिया जिसके वजह से पृथ्वीराज कमजोर पड़ता गया और अंत में उसका पराजय हो गया मुसलमानों के लिए बहुत बड़ी जीत थी।
जीत का श्रेय हम शत्रुता को देना चाहेंगे क्योंकि अगर आज सब राजपूत साथ होते तो मोहम्मद गोरी की पराजय होती और पृथ्वीराज चौहान का विजय अगर सब साथ होते तो भारत पर कभी भी मुस्लिमों का शासन नहीं होता आपसी मतभेद ने हमारी धरती को बाहरी के हवाले कर दिया। पृथ्वीराज का हार का कारण यह भी था कि मोहम्मद गोरी ने अपने सेना को बहुत ही उच्च कोटि का प्रशिक्षण दिया था। जिसके कारण वह संख्या में कम होने के बावजूद पृथ्वीराज के 300000 सेनानियों से जीत गए।
युद्ध का परिणाम-
युद्ध में राजपूतों की हार हुई और तुर्की सेना की जीत। इस जीत ने मुसलमानों के भारत में जमा दिए और उन्होंने धीरे धीरे पुरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया। इस युद्ध के बाद मुस्लिमों के लिए भारत का दरवाजा खुल गया। इस युद्ध के बाद हिंदुओं की संख्या कम होती गई क्योंकि बहुत सारे हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमानों में तब्दील कराया जा रहा था जगह जगह हिंदुओं की सभ्यता को ध्वस्त कर रहे थे। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाया जा रहा था। इस युद्ध में भारत का नक्शा ही बदल कर रख दिया था यह युद्ध ना सिर्फ पृथ्वीराज की हार थी बल्कि पूरे भारतवर्ष की हार थी पूरे हिंदुओं की हार थी।
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