महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय | Mahadevi Varma Biography Hindi

चलो दोस्तों आज हम महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय,  Mahadevi Varma Biography हिंदी में उनके जीवन से जुडी हुई बातें पढ़ते हैं वह एक बहुत ही सफल कवयित्री हैं|

महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय

आज हम एक ऐसी कवयित्री और एक ऐसी गीतीकार हैं, जो प्रेम और करुणा को स्वर देने वाली है तथा आधुनिक युग की मीरा के नाम से प्रसिद्ध महादेवी वर्मा जी का जन्म सन 1960 ईस्वी को होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था|

इनके पिता श्री गोविंद सहाय भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे इनकी माता हेम रानी परम विदुषी महिला एवं धार्मिक स्वभाव की थी एवं नाना बृजवासी के अच्छे कवि थे इनकी मां हमेशा इनको रामायण महाभारत की कथाएं सुनाती रहती थी इसी के कारण इनके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ था।

 

महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय
महादेवी वर्मा जी

महादेवी जी पर इन सभी का प्रभाव पड़ा और अंकिता वे प्रसिद्ध कवित्री प्रकृति एवं परमात्मा के निष्ठावान उपाशी का और सफल प्रधानाचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुई|  महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में पूरी किया|  तथा इनके पति इनका अपने पति से संबंध विच्छेद हो गया तत्पश्चात यह प्रयाग चली आए और प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

इन्हीं दिनों के बीच इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इनके जीवन पर महात्मा गांधी का और कला साहित्य साधना पर कवींद्र – रवींद्र का प्रभाव पड़ा। शिक्षा समाप्त कर इनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य पद पर हो गई फिर आप उसकी कुलपति बनी इस विद्यापीठ में आपके संरक्षण में उत्तरोत्तर उन्नति की। आपने ‘साहित्य संसद’ नामक एक संस्था स्थापित की जिसका उद्देश्य हिंदी साहित्यकारों की सहायता करना था|

दर्शन से आपको गहरा लगाव रहा इसका प्रभाव आपकी रचनाओं पर काफी पड़ा है| समाज के उपेक्षित वर्ग, नारी, जाति एवं पालतू पशु पक्षियों तक से आपका स्नेह रहा| आपने चाँद पत्रिका का संपादन किया| ‘नीरजा’ पर आपको सेकसरिया पुरस्कार तथा ‘यामा’ पर मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हो चुका है|

उत्तर प्रदेश सरकार ने आपको कुछ समय के लिए विधान परिषद की सदस्यता प्रदान की और भारत सरकार ने आप को पद्म भूषण की उपाधि से विभूषित किया| आप एक कुशल चित्रकार्त्री थीं| अभी भी आप साहित्य साधना में तल्लीनता के साथ संलग्न रही| 11 सितंबर सन 1987 ईस्वी को इस महान लेखिका का स्वर्गवास हो गया|

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महादेवी जी  आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी हैं। प्रसाद, पंत, निराला तथा महादेवी वर्मा – ‘छायावाद – युग’ के इन चार महान कवियों के बृहत चतुष्टयी के नाम से जाना जाता है। महादेवी जी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात ही काव्य रचना प्रारंभ कर दी थी|

करुणा  एवं भावुकता इनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग है| जहां एक ओर इनके काव्य में इन भावनाओं के व्यक्ति हुई, वहीं दूसरी ओर इनकी ये भावनाएं संपर्क में आने वाली पीड़ित एवं दुखी व्यक्तियों को भी प्रेम एवं सहानुभूति से प्रभावित करती रही| इनके द्वारा रचित काव्य में रहस्यवाद, वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल एवं मर्मस्पर्शी भाव मुखरित हुए हैं| 

उनकी रचनाएं सर्वप्रथम ‘चाँद’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। इनकी काव्यात्मक प्रतिभा के लिए ‘सेकसरिया’ एवं ‘मंगलाप्रसाद’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया इन्हें ‘ज्ञानपीठ’ एवं सन 1983 ईस्वी में ‘भारत – भारती’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

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रचनाएं:- महादेवी वर्मा जी की प्रमुख रचनाएं निम्न है

 महादेवी वर्मा  काव्य – संग्रह:-  निहार, रश्मि, नीरजा, संध्यागीत, दीपशिखा, यामा, सप्तपर्णा आदि।

 महादेवी वर्मा  संस्मरण और रेखाचित्र:-  अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी।
 महादेवी वर्मा  निबंध :- श्रृंखला की कड़ियां, क्षणदा।
 महादेवी वर्मा आलोचना:- हिंदी का विवेचनात्मक गद्य।

महादेवी जी के काव्य की मूल प्रेरणा पीड़ा वेदना अवसाद और विषाद में निहित है वेदना से इनका स्वाभाविक प्रेम है यह उसी के साथ रहना चाहती हैं और उसके आगे मिलन सुख को भी नगण्य समझती हैं- 

                                                                            मैं नीर भरी दुख की बदली!

                                                                           स्पंदन में चिर निस्पंदन बसा,

                                                                            क्रंदन में आहत विश्व हंसा,

                                                                            नयनों में दीपक से जलते,

                                                                           पलकों में निर्झरिणी मछली।

महादेवी जी वेदना के गीत गाने में ही संतोष का अनुभव करती हैं। अधिकांश आलोचक इनकी पीड़ा का उत्स ( स्रोत ) इनके गृहस्थ जीवन की विफलता तथा अन्य व्यक्तिगत कुंठाओ को मानते हैं|

महादेवी जी का रहस्यवाद साधनात्मक न होकर भावात्मक हैं| उन्होंने अपने व्यक्तिगत लौकिक प्रेम की विफलता को ही अव्यक्त के प्रति प्रेम में परिणित कर दिया है। इनके गहन दार्शनिक अध्ययन, चिंतन और मनन ने इसी व्यक्तिगत वेदना को पर पारलौकिकता की उज्जवल छटा से उद्भासित कर दिया है।

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महादेवी जी का प्रकृति के साथ आत्मीय संबंध है। इनके सुख-दुख की अभिव्यक्ति में प्रकृति ने बड़ी सहायता पहुंचाई है| वह प्रियता की ओर संकेत करने वाली सहचरी है| वे प्रकृति में विराट की छाया देखती हैं-

                                                       वीथियों पर गा करुण विहाग, सुनता किसको पारावार?

                                                   पथिक – सा भटका फिरता वात, लिए क्यों स्वरलहरी का भार?

छायावादी कवियों के समान इन्होंने प्रकृति का मानवीकरण भी किया है-

                                                              धीरे – धीरे उतर क्षितिज से आ वसंत रजनी!

                                                                        तारकमय नव वेणी – बन्धन

                                                                       शीश – फूल कर शशि का नूतन

                                                                     रश्मि – वलय सित – घन  अवगुण्ठन

                                                             मुक्ताहल अभिराम बिछा दे चितवन से अपनी!

 महादेवी वर्मा जी ने अलंकारिक तथा अन्य रूपों में भी उन्होंने प्रकृति का चित्रण किया है छायावाद की अभिव्यंजना आत्मक शैली में सुंदर रूप को द्वारा प्रकृति के मनोरम चित्र खींचने में महादेवी जी की कोई समानता नहीं कर सकता। प्रकृति को इन्होंने अनेक रूपों में लिया है।

                                                                     राख से अंगार तारे झड़ रहे हैं,

                                                                     धूप बंदी रंग के निर्झर खुले हैं,

                                                                     खोलता है पंख रूपों में अंधेरा !

                                                                          सजल है कितना सवेरा !

महादेवी जी ने खड़ी बोली का शुद्ध साहित्यिक रूप अपनाया है। इनकी भाषा पर संस्कृति के तत्सम शब्दावली की गहरी छाप है। समासोक्ति, मूर्तिमत्ता और अभिव्यंजना उनकी कविता की विशेषताएं हैं। चित्रमयता तथा प्रतीक-योजना का बाहुल्य इनके काव्य में यत्र-तत्र दिखाई पड़ता है।

इससे इनकी भाषा कहीं-कहीं की क्लिष्ट हो गई है। किंतु फिर भी इनकी भाषा में लालित्य तथा प्रसाद गुण की प्रधानता है। इसमें प्रवाह है और सुकुमार भावों से अनुरूप कोमलता मिलती है। इन्होंने अपनी भाषा के शब्दों का लाक्षणिक प्रयोग बहुत किया है।

महादेवी जी की शैली मुक्तक गीतिकाव्य की अत्यधिक प्रवाहमयी सुललित शैली है, जिसमें संकेतिका की प्रधानता है। अत्यधिक लाक्षणिकता और प्रतीकों की बहुलता से इनकी शैली को अनेक स्थानों पर दुर्बोध भी बना दिया है, पर इसकी सरसता पाठक को बरबस अपने पास बहा ले जाती है।

महादेवी जी गीतिकार है उनकी समस्त रचनाएं गीतों में है जिनमें संगीत का मधुर निर्वाह हुआ है और वह सरस और प्रवाहपूर्ण है| इनके काव्य में रूपक, उपमा, समासोक्ति, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि प्राचीन अलंकारों का तथा विशेषण, विपर्यय, मानवीकरण आदि नवीन अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।

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महादेवी जी की रचनाओं में लाक्षणिक ताकि खूब दर्शन होते हैं| जैसे-” सजल है कितना सबेरा!” में ‘सजल’ लाक्षणिक शब्द है| उनके काव्य में प्रतीकों का बाहुल्य है| “मैं नीर भरी दुख की बदली” शब्दावली ‘करुणा से परिपूर्ण हृदय वाली नारी’ का प्रतीक है|

आधुनिक हिंदी कवित्रीयों में महादेवी जी का प्रथम स्थान है | वह हिंदी गद्य तथा पद्य दोनों में अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व रखती हैं। उनके काव्य में अनुभूति, चिंतन एवं कल्पना का सुंदर समावेश हुआ है। छायावादी कवियों में प्रसाद, पंत और निराला के साथ महादेवी जी का नाम सदस्य जायेगा | तल्लीनता और विरह – भावना की प्रधानता के कारण उनको ‘आधुनिक युग की मीरा’ कहा जाता है| मधुरतम गीतों की कवयित्री के रूप में उनका स्थान सर्वोच्च है।

आज इस पोस्ट से आपने जाना प्रेम और करुणा को स्वर देने वाली महादेवी वर्मा का जीवन परिचय| आपको महादेवी जी के बारे में हमने पूरी जानकारी उपलब्ध कराई है, आशा करते हैं कि आपने इस पोस्ट को पढ़कर महदेवी जी के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली होगी| हमें कमेंट में जरूर बताइए कि आपको महदेवी  जी के जीवन परिचय के बारे में आपको यह जानकारी कैसी लगी।

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