बसंत पंचमी पर निबंध इन हिंदी
बसंत पंचमी को वसंत पंचमी के नाम से भी पुकारा जाता है | अलग अलग प्रान्त में जिसका जैसा तलाफुज़ रहता है वह उस हिसाब से इस पंचमी को बसंत या वसंत कहता है | बसंत पंचमी एक हिन्दू{सनातन} धर्म का त्यौहार है जिसको तब मनाया जाता जब पत-झड़ होता है मतलब बसंत का आगमन होना उससे बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है | भारत वर्ष में जहाँ जहाँ खेती बाड़ी होती है वहाँ-वहाँ इस त्यौहार का विशेष महत्व है | किसान इस त्यौहार को बहुत महत्व देते है, क्योंकी उनकी फसलों से पुराने पत्ते गिरते है और उसकी जगह नए पत्ते उगते है जैसे की गेहूं की बालियाँ,आम में बौर इत्यादि के फलने-फूलने की सही शुरआत हो जाती है |
पंजाब राज्य मै सभी लोग बसंत के समय पीले वस्त्र ज़ादा पहनते है | यही नहीं पंजाब मै पीली सरसो , पीली चावल का भोजन करते है | बसंत के आते ही प्रकृति मै बहुत बदलाव आ जाता है और सभी जीव जंतुओं मै खुशी का उमंग जाग उठता है | बसंत के आते ही हवायें ज़ोर शोर से चलने लगती है | बसंत के समय ज़ादा तर छोटे बच्चे पतंग उड़ाते है | आसमान मै हर जगह पतंग उड़ती दिखाई पड़ती है | बसंत के आते ही होली और होलिका का त्यौहार भी आ जाता है,पर ४० दिन के बाद ही होली त्यौहार आता है |
बसंत पंचमी मै संगीत और विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा होती है | यह त्यौहार विश्वभर मै कई जगह जैसे नेपाल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया इत्यादि देश मै बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है | बसंत पंचमी प्राचीन समय काल से मनाया जाता रहा है | इसके आगमन से पहले भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती है | हमारे शास्त्रों और पुराणों मै इसे “ऋषि पंचमी” नाम से जाना जाता था | बसंत पंचमी बसंत के आने के पांचवे दिन मनाई जाती है इसलिए इससे पंचमी कहा जाता है जो की बसंत और पंचमी के जुड़ाव को बसंत पंचमी नाम दिया गया है आज की मान्यताओं के अनुसार | आधुनिक युग मै बसंत पंचमी जनवरी या फरवरी के माह मै ही आन पड़ती है |
बसंत पंचमी की शुरआत कैसे और कब हुई इसकी एक कथा है |
सृष्टि के उत्पत्ति के समय भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने कई जीव जंतु और मनुष्य की रचना की, परन्तु कुछ कमी होने के कारण हर तरफ सनाटा था फिर विष्णु जी ने इस कमी का हाल बताया तब ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल छिड़का धरती पर जिससे उसमे कम्पन होने लगा था और फिर वृक्षों के बीच से एक दिव्या अद्भुत ४ भुजा धरी शक्ति प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थी तथा बाकी के दो हाथों में पुस्तक और माला थी
। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा वादन का निवेदन किया जिसकी ध्वनि से समस्त प्राणी जीव- जन्तुंओं को वाणी प्राप्त हुई । जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ | पवन चलने से सरसराहट हो गयी | तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को स्वर की देवी सरस्वती नाम दिया । माता सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी, मेधा, गौरी, लक्ष्मी, धरा, रमा, महामाया, धृति, वाग्देवी तथा कई अन्य नामों से शुशोभित किया जाता है।
संगीत को उत्पन करने वाली माता सरस्वती को संगीत की देवी कहा जाता है |बसंत पंचमी को माता सरस्वती के जनम दिवस के रूप में मनाया जाता है |
भारत वर्ष में बसंत पंचमी के दिन हर शिक्षण संस्थान जैसे स्कूल,कॉलेज हर जगह माता सरस्वती की पूजा की जाती है | आंध्र प्रदेश में बसंत पंचमी को श्री पंचमी के नाम से जाना जाता है | बांग्लादेश में बसंत पंचमी को सभी प्रमुख शैक्षिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों की
छुटियाँ और एक विशेष पूजा के करने की परंपरा है | बसंत पंचमी में दो अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है जिसमे कामदेव-रति और सूर्य देव को भी बहुत महत्व दिया जाता है |
बसंत पंचमी के समय ही भगवन शिव के ध्यान को तोड़ने में माता पार्वती की सहायता की थी काम देव ने विष्णु जी के कहने पर | काम देव ने शिव जी पे काम वाण चलाया था क्यों की शिव जी ने जगत के कल्याण में सहक की भूमिका निभाना बंद कर दिया था और ध्यान मगना हो गए थे | जिसके बाद उन्हें शिव जी के क्रोध का अधिकारी भी बना पड़ा |
बसंत पंचमी के समय गुजरात के कच्छ में अलग ही दृश्य रहता है उनके लिए बसंत पंचमी प्यार और भावनात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है, और उपहार के रूप में आम पत्तियों के साथ फूलों के गुलदस्ते और माला तैयार करके एक दूसरे को भेंट देते है | वहाँ लोग भगवा,गुलाबी या पीले रंग में कपड़े पहनते हैं | राधा-कृष्णा के भजन हर समय बजते है |
भारत के अन्य राज्य जैसे मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में सुबह सुबह पवित्र नदियों में स्नान करके शिव-पार्वती के पूजन करते है और बसंत में उगने वाली सभी चीज़े अर्पित करते है |
बसंत पंचमी की एक विशेषता ये है की इस दिन व्यक्ति कभी भी सरस्वती पूजा कर सकता है, इसका कोई निर्धारित समय नहीं है | जहांतर बाकी सभी हिन्दू त्योहारों में मुहूर्त में पूजन करने का बहुत महत्व है | महाराष्ट्र के नव विवाहित जोड़े शादी के बाद पीले वस्त्र पहनकर बसंत पंचमी में पहले मंदिर जाके पूजा करते है और अपने विवाहित जीवन को सुखमये होने का आशीर्वाद मांगते है | वहीँ पंजाब में हिन्दू और सिख अपने सिर पे पीली पगड़ी या की कोई भी पीले रंग की पोशाक पहनते है |
उत्तराखंड में, सरस्वती पूजा के अलावा, लोग शिव-पार्वती की पूजा करते हैं, और साथ ही में धरती माता,कृषि-फसलों को भी पूजते है | वहां स्कूलों में बच्चो को उपहार या मिठाइयां बाटी जाती है | इंडोनेशियाई हिंदुओं में बसंत पंचमी को हरि राय सरस्वती नाम से जाना जाता है | परिवारो, शैक्षिक संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों में सुबह से दोपहर तक प्रार्थनाओं के साथ मनाया जाता है। सभी शिक्षक और छात्र अपनी सामान्य पोषक के बजाए चमकदार एवम रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं, और बच्चे स्कूलों में प्रसाद के लिए केक और फल लाते हैं।
मुस्लिमों में बसंत को मानना बारवी सदी से शुरू हुआ था |
सिखों में बसंत के दिन हरमंदिर साहिब{स्वर्ण मंदिर}अमृतसर में, संगीतकार बसंत राग गाकर संगीत शुरू करते हैं। यह अभ्यास वैसाख के पहले दिन तक जारी रहता है |
बसंत पंचमी को जीवन की शुरुआत का दिन भी माना जाता है | इस दिन का मुहूर्त सबसे श्रेष्ट मुहूर्त माना जाता है | इस दिन विवाह, घर निर्माण, शिक्षा संसथानो का उद्घाटन इत्यादि के लिए एक दम उत्तम समय मन जाता है | इस दिन सभी मनुष्यों को शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए | बसंत पंचमी के जितने महत्व बताये जाये उतने कम है | ये हमे जीवन, ज्ञान, चेतना, हर्ष, प्यार, दया, त्याग, तप करना सिखाती है |
अंततः इससे याद रखे ,
” या देवी सर्वभूतेषु, विद्या रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः “।।
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