होली पर संस्कृत में निबंध। Essay on Holi in Sanskrit

दोस्तों  आज हम होली पर संस्कृत में निबंध। Essay on Holi in Sanskrit के बारे में पढ़ेंगे | यदि आपको होली पर संस्कृत में निबंध  ( Essay on Holi in Sanskrit) नही पता है तो यहाँ आपको पूरी जानकारी मिलेगी|

होली पर निबंध संस्कृत में। Holi Essay Par Sanskrit Mein Niband

 

होली पर निबंध संस्कृत में

होलिकोत्सव:

होलिकोत्सव: भारतवर्षस्य सर्वजनानानं कृते प्रिय: उत्सव:अस्ति। अयम उत्सव: फल्गुन शुक्ल पक्षस्य पुर्णिमायां  तिथौ संघटते। अयमुत्सव: भारतवर्षस्य  प्रसिद्ध: उत्सव आस्ति। एतस्योत्स्वस्य सम्बन्धिनी एका सुप्रसिद्धा कथा प्रस्तूयतेडत्र हिरण्यकशिपोः भगिनी होलिकास्वभृआतू संतोषाय स्वकीयं भृतृजं प्रच्छादम अन्गके निधाय सगर्व वद्धौ प्रविष्टा, यत: वरदान प्रभावद्  व्रद्दि:  तां दगर्धु  न पृभवतस्मि किंतु अद्य भगवत: कृपया होलिका भस्म्साज्जता। बालक: प्रहलाद: ईश्वरस्य  प्रसादेन पृतापेन च सुरक्षित: आसीत्|

बालक: प्रहलाद: प्रदीप्ताड् रेषु क्रीडान्  मोदमानमनस : तत्र आसीत् । हिरण्यकषिपु स्वपुत्रं प्रहलादं मरयितुम अनेकाएक षडयन्त्रम् अकुर्बन । दृढ़पृतिज्ञ प्रहलादः स्वकीये सत्यागृहे सफलोजातः। अंते च भगवान नृसिंह: हिरण्यकषिपुम् अभारयत|  तदारभ्य होलिकदहनम्  उदिश्य होलिकोत्सव प्रारभत । प्रह्लादस्य चरित्रेण एषा शिक्षा प्राप्ता  भवति यद्-

निन्दन्तु  नीतिनिपुणा,यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मी : समाविषतु गच्छ्तु वा यथेष्ठम्।
अदैव  वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्ययातपथ: पृविचलंति पदं न धीरा :।।

नीतिनिपुणा : श्लाघन्ताम उत निन्दतू सम्पति प्राप्यताम अथवा नष्टा भवतु ,अद्य मरणम् वा युगान्ते भवतु- किन्तु धीरा: कदापि विचलिता: ना भवन्ति। कठिन सन्दर्भेपि न्यययं मार्ग  न   परित्यजंती|

Holi essay in sanskrit

 

अस्मिन पर्वणि पुरा यगिकैयन्ज्ञा अनुश्ठीयते स्मा तटस्थाने  साम्पृतं  केवलं वृक्षलता -गुल्म-  काण्ठानि हरितानि शुष्काणी वा ‌इत‌स्तत: स‌ंहृत्य शुठकोपलै: सह दाहयन्ति जना: एतत् तस्य सर्वथा विकृ‌ंत स्वरूपम। फाल्गुन शुक्ल पक्षस्य पूर्णिमायां तिथौ होलिकादाह: कर्त‌व्य इति एस शाष्त्रीयो विधी‌:। तदनु प्रतिपति्यौ प्रात: रागक्रीडार्थाय बालिका: युतान: वृद्धास्य स्ववयस्यै: सह आयन्ति, परस्परं स्नेहेन मिलन्ति होलिकारांग गायन्ति, क्रीडन्ती, कूर्दर्न्ती, नृत्यन्ती, समुच्छलन्ति च। मध्याहकालं यावद् इदं क्रीडा प्रचलति। तदनन्तरं स्नानादिकं विधायक पूर्वरागद्वेषादिकं नीचोच्चभावना: च परित्यज्य सर्वे परस्परं मिलन्त: सन्त: अबीरादिलेपनं मिष्ठान्न्दिकस्य अपि वितरणं परस्परं विदधति।

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स्पृश्याडस्पृश्यस्य, नीचोच्चभावनायाश्च‌ समापनाय एवं अयमुत्सव: आविष्कृत इति मन्ये। साम्प्रतिके मुंडे एवा स्पृश्यास्पृश्य भावना राष्ट्रीय प्रगति परे बाधारूपेण पुर: पतति, इत्येव सामाजिकानां मतम‌्। तस्माद् अस्य गालियां प्रभृतिभि: कुकृत्यै: दुरूपयोगो न कर्तव्य: अयमुत्सवो जनरत्जनाय मनोत्जनाय च समुद्भूतम‌् इति सर्वसम्मतं मतम‌्।

 

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सर्वेभ्य: होलिका पर्वण्: हार्दिक्य शुभकामना:

 

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