दोस्तो आज हम भारत के अरस्तु का जीवन परिचय | Biography Of Aristotle In Hindi के बारे में जानेंगे|
अरस्तु का जीवन
भगवान ने इस सृष्टि की रचना की है और मनुष्य और जानवरों को भी भगवान ने ही जन्म दिया। परन्तु फिर भी मनुष्य और जानवर भिन्न है क्योंकि मनुष्य के पास भगवान ने एक मानसिक ताकत दी है जिसके इस्तेमाल से वह हर परिस्थिति में स्वयं को निकाल सकता है। दुनिया बेहद तेजी से विकास के पथ पर दौड़ रही है, जिसका अधिकतम श्रेय यहाँ रह रहे लोगों को जाता है।
हालांकि यह कई बार कहा गया है कि हर मनुष्य के पास एक समान ताकत है और उतना ही समय परन्तु हर व्यक्ति फिर भी भिन्न है। जिसका कारण है प्रत्येक व्यक्ति की सोच। सोच ही मनुष्य का वह मार्ग है जो उसे सबसे भिन्न बनाता है। आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके समक्ष उस महान सख्शियत की जीवन यात्रा पर ले जाएंगे जिन्हें महान दार्शनिक और वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति कहा गया। जिनका नाम है अरस्तु (Aristotle)।
अरस्तु कौन थे (Who is Aristotle?)
अरस्तु एक महान दार्शनिक और वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति थे, जिनके गुरु प्लूटो थे उनको भी महान दार्शनिक होने का दर्जा मिला। इनकी सोच का दायरा हर क्षेत्र तक था यह व्यक्ति को भी पढ़ते थे, अर्थात यह मानवीय जीवन और उनके स्वभाव का शोध करना पसंद करते थे। यह व्यक्ति के जीवन मे आने वाली परिस्थितियों के बारे में विचार करते थे और यह पता करते थे प्रत्येक व्यक्ति की उस स्थिति में कैसे सोचता है या उसका मस्तिष्क कैसे कार्य करता है।
अरस्तु को जीव विज्ञान का जनक कहा जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम जीव जंतुओं के विषयों में विचार व्यक्त किये थे। अरस्तु ने ही जीवो को जन्तु और वनस्पति जगत में बांटा था। अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया।
अरस्तु का जीवन परिचय
अरस्तु का जन्म 384 ई.पु. स्तैगीरस की ग्रीक कॉलोनी में हुआ था। उनके पिता मकदूनिय के राजा के दरबार में शाही वैद्य थे। शाही वैद्य होने के कारण बचपन से उनका लगातार मकदूनिया के राजा के दरबार में आना जाना लगा रहता था, जिसके कारण इनके जीवन मे राज दरबार का बेहद योगदान रहा।
उनके पिता की मौत उनके बचपन में ही हो गये थी। 17 वर्षीय अरस्तु को उनके अभिभावक ने शिक्षा पुरी करने के लिए बौद्धिक शिक्षा केंद्र एथेंस भेज दिया। वो वहा पर बीस वर्षो तक प्लेटो से शिक्षा पाते रहे। पढाई के अंतिम वर्षो में वो स्वयं अकादमी में पढाने लगे। अरस्तु को उस समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था जिसके प्रशंशा स्वयं उसके गुरु भी करते थे। अरस्तु यूनानी दार्शनिक थे, अरस्तु की गिनती अपने समय के साथ साथ संसार में पैदा होने वाले समस्त महान लोगो और खासकर दार्शनिकों की बीच होती है।
अरस्तु परम्पराओं पर भरोसा नहीं करके किसी भी घटना की जाँच के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते थे। प्लूटो अरस्तु से काफी प्रभावित थे और वो अरस्तु को अकेडमी का मस्तिष्क भी कहते थे। 347 ईस्वी पूर्व में प्लेटो के निधन के बाद अरस्तु ही अकादमी के नेतृत्व के अधिकारी थे किन्तु प्लेटो के शिक्षाओं से अलग होने के कारण उन्हें यह अवसर नही दिया गया। एत्रानियस के मित्र शाषक ह्र्मियाज के निमत्रण पर अरस्तु उनके दरबार में चले गये। वो वहा पर तीन वर्ष रहे और इस दौरान उन्होंने राजा की भतीजी ह्र्पिलिस नामक महिला से विवाह कर लिया।
अरस्तु की ये दुसरी पत्नी थी उससे पहले उन्होंने पिथियस नामक महिला से विवाह किया था जिसके मौत के बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया था। इसके बाद उनके यहा नेकोमैक्स नामक पुत्र का जन्म हुआ। सबसे ताज्जुब की बात ये है कि अरस्तु के पिता और पुत्र का नाम एक ही था।
शायद अरस्तु अपने पिता को बहुत प्रेम करते थे इसी वजह से उनकी याद में उन्होंने अपने पुत्र का नाम भी वही रखा था। अब मकदूनिया के राजा फिलिप के निमन्त्रण पर वो उनके तेरह वर्षीय पुत्र को पढाने लगे। पिता-पुत्र दोनों ही अरस्तु को बड़ा सम्मान देते थे। लोग यहा तक कहते थे कि अरस्तु को शाही दरबार से काफी धन मिलता है और हजारो गुलाम उनकी सेवा में रहते है हालंकि ये सब बाते निराधार थी। एलेग्जेंडर के राजा बनने के बाद अरस्तु का काम खत्म हो गया और वो वापस एथेंस आ गये।
अरस्तु ने प्लेटोनिक स्कूल और प्लेटोवाद की स्थापना की। अरस्तु अक्सर प्रवचन देते समय टहलते रहते थे इसलिए कुछ समय वाद उनके अनुयायी पेरीपेटेटिक्स कहलाने लगे। अरस्तु के अनेको रचनाये लिखी थी जो समय के साथ नष्ट हो गयी थी उनकी 200 रचनाओं में से केवल 30 शेष रह गयी जिनके उनके जीवन और प्रवचनों के बारे में जानकारी मिली थी। अरस्तु ने अपने समय में लगभग 400 किताबे लिखी हैं जो विभिन्न विषयों पर आधारित है जैसे कि भौतिकी, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, जीवविज्ञान आदि |
इस से पता चलता है कि अरस्तु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। अरस्तु के द्वारा रचित उनकी आध्यात्मिक रचनाएं आज भी क्रिस्चियन सभ्यता को प्रभावित कर रही है और बड़ी बड़ी कक्षाओं में उनके दर्शनों को आज भी पढ़ाया जाता है चूँकि उस समय की मुख्य समस्या ये थी कि उस दौर में लेखन को सुरक्षित रखे जाने के माध्यम आज जितने सटीक और प्रभावी नहीं थे जिसकी वजह से उनकी कई रचनाएं आज सुरक्षित नहीं है और खत्म हो चुकी है लेकिन फिर भी कुछ रचनाएं है जो लोगो को आज भी लाभान्वित कर रही है और रिसर्च के काम आती है।
अरस्तु के कोट्स
अरस्तु के अनुसार “राज्य में न अधिक पूंजीपति हो और ना ही गरीब अधिक हो, बल्कि मध्यमवर्गीय लोगो का बाहुल्य हो।” यहाँ अरस्तु के कहने का अभिप्राय है कि किसी भी राज्य में न ही अधिक अमीर हो और न ही कोई अधिक गरीब। क्योंकि किसी भी राज्य में अगर मनुष्य के पास धन अधिक होगा तो वह धन की इज्जत नहीं करेगा एवं उसके खर्च भी अधिक होंगे। यह भी माना गया है कि धन ही धन को आकर्षित करता है।
सरल भाषा स्वरूप कहा जाए तो ज्यादा धन होने की वजह से व्यक्ति अधिक धन के लालच करने लगता है, जिसके कारण वह कभी स्वंय या कभी दूसरों को हानि पहुंचाने की कोशिश करता है। वहीं दूसरा पहलू सोचा जाए तो वह भी गलत है अगर किसी राज्य में सिर्फ गरीब लोग रहते हों तो वह थोड़े से धन देखकर ही लालच में आ जाएंगे क्योंकि हर व्यक्ति की कुछ जरूरत होती है जिसे वह हर हाल में पूर्ण करना चाहता है। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए वह गलत कार्य करने को मजबूर हो जाता है । इसीलिए अरस्तु कहते हैं कि राज्य में अधिकतर मध्य वर्गीय परिवार होंगे तो न ही उन्हें अधिक धन का लालच होगा या धन की अधिकतम जरूरत ।
आज की पोस्ट के माध्यम से आपने जाना कि अरस्तु का जीवन परिचय, Biography Of Aristotle In Hindiऔर आपको इस पोस्ट के द्वारा हमने आपको अरस्तु के बारे में बताया। आशा करते है की आपने इस पोस्ट के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की होगी।
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