बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध – Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi

दोस्तो आज हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध – Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi  के बारे में जानेंगे, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत भारत सरकार ने प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि कन्या योजना  की शुरुआत की|

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध - Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

 

 बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निबंध प्रस्तावना

एक बार स्वामी विवेकानंद ने किसी जगह पर कहा था “जिस देश में नारियों का सम्मान नहीं होता हो वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता” तथा वेदों में भी कहा गया है कि “जिस स्थान पर नारियों का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं।

आज के समय में भारत में बहुत से नारी सशक्तिकरण की योजनाएं लागू है, जिनमें से “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” एक है लेकिन यह इस देश का यह दुर्भाग्य है कि जिस देश में दशहरे में देवी दुर्गा तथा दिवाली में मां लक्ष्मी की पूजा होती है उसी देश में इन्हीं देवियों के स्वरूप लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है और अगर वह पैदा होती हैं तो उन्हें पैदा होने के बाद मौत के घाट उतार दिया जाता अथवा उन्हें किसी सुनसान जगह पर छोड़ दिया जाता है।

किसी कन्या को मारना यह सबसे बड़ा पाप है इसी संबंध में एक छोटी सी फिल्म भी बनी थी भारत में, जिसमें यह दर्शाया गया था कि राजस्थान की एक गांव में कोई भी बेटी नहीं रहती थी और स्त्रियां भी नहीं रहती थी अगर वहां गलती से भी कोई बेटी पैदा हो जाती थी तो उससे दूध से भरी टंकी में डुबोकर बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाता था। यह फिल्म भारत के उस समय पर आधारित है जिस समय में लड़कियों का मान भारत में नहीं होता था तथा कोई भी अपने परिवार में बेटियां नहीं चाहता था।

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इंसान की सोच (Thinking)
भारत में आज भी कई लोग ऐसे हैं जो बेटे तथा बेटियों में अंतर करते हैं। लोग अपने बेटे को अच्छी शिक्षा के लिए महंगे स्कूलों में पढ़ाते हैं परंतु वहीं बेटियों को लोग उतना नहीं पढ़ाते तथा उतना सम्मान भी नहीं देते हैं। आज के लोग की यही सोच है कि बेटे हमारे बुढ़ापे में हमारी सेवा करेंगे लेकिन बेटियां पराया धन है, वह शादी करके दूसरे के घर चली जाएंगी। आज के जमाने में कुछ लोग पैसे के लोभी भी होते हैं जिसके कारण उनकी सोचते हैं कि बेटा पैदा होगा तो हम उसे पढ़ा लिखा कर अच्छी नौकरी दिलाएंगे फिर उसकी शादी करेंगे और शादी में दहेज की मांग करेंगे और अगर वे बेटियों को पैदा करते हैं तो उन्हें पढ़ाने का भी खर्च उठाना पड़ेगा और दहेज भी देना पड़ेगा, लोग यह जानते हुए भी कि दहेज लेना तथा देना दोनों ही कानूनन अपराध है फिर भी  लोग यह अपराध भारत में करते हैं। इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान को शुरू किया है।

 प्राचीन काल में बेटियों की स्थिति

आज भले ही बेटियों का उतना स्वतंत्रता प्राप्त ना हो लेकिन वेदों तथा उपनिषदों के काल में बेटी तथा नारियों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति। वे पुरुषों के समान ही विद्या को ग्रहण भी करती थी तथा उनके साथ शास्त्रार्थ भी करती थी। आज की नारियों को तो अपने पसंद के लड़के के साथ विवाह करने की भी अनुमति प्राप्त नहीं है लेकिन पुराने समय में अथवा प्राचीन काल में नारियों को तथा बेटियों को अविवाहित है तथा स्वेच्छा से अपना वर चुनने की पूरा अधिकार था।

इससे यह कहा जा सकता है कि पुरातन काल में बेटियों का सम्मान तथा सुरक्षा दोनों ही होती थी साथ-साथ व स्वतंत्र भी हुआ करती थी। पुरातन काल में बेटियों को गृहस्वामिनी, मां तथा बहन का जो स्थान प्राप्त था वह एक पिता तथा गुरु से भी उच्च माना जाता था। महाभारत में वर्णित है-“ गुरुणां चैव सर्वेषां माता परमं को गुरुः|”

 मध्यकाल में बेटियों की स्थिति

इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि मध्यकाल में बेटियों की स्थिति बहुत ही सोचनीय हो गई थी इस काल में आकर बेटियां केवल चारदीवारी में ही रहने लगी थी जिससे वह सिर्फ अपने घर परिवार तक ही सीमित रह जाती थी, क्योंकि यह समय था, विदेशी आक्रमणकारियों का इन्हीं आक्रमणकारियों के आक्रमण के कारण समाज में मूल व्यवस्था चरमरा गई थी, सभी परतंत्र हो गए थे परतंत्र हो के इन विदेशी आक्रमणकारियों का अनुकरण करने लगे थे। विदेशी आक्रमणकारियों के लिए बेटियां सिर्फ भोग तथा विलास और वासना की वस्तु हो गई थी। इस काल में बेटियों को विद्यालय भेजकर पढ़ाना संभव नहीं था। 

इन्हीं सब कारणों से तथा यह वही काल है जहां से बेटियों के लिए कुल प्रथाएं प्रचलित हुई जैसे ‘बाल विवाह’ जिसमें लड़कियों की कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था तथा वह दूसरे घर चली जाती थी। इसी काल में ‘पर्दा प्रथा’ का भी प्रचलन हुआ जिसमें नारी अपने घर पर ही रहती थी किसी भी बाहरी व्यक्ति के सामने नहीं आती थी। इसी काल में ‘सती प्रथा’ का भी जन्म हुआ यह कुप्रथा इसी काल की ही देन है सती प्रथा जिसमें जब बेटियां अपने पिता अथवा नारियां अपने पति के द्वारा युद्ध में अपनी जान गवा देने पर  सभी युवतियां और औरतें आक्रमणकारियों से बचने के लिए एक बड़े से हवन कुंड में अपनी आहुति चढ़ा दिया करती थी। इसी काल में विधवाओं को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा था। इस काल में संतों ने भी नारियों का साथ नहीं दिया था और उनके प्रति कटु दृष्टिकोण अपनाया था|

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ slogan

कबीर ने एक जगह लिखा है –

 नारी तो हम भी करी, जाना नहीं बिचार|
जब जाना तब परिहरी, नारी बड़ा बिकार||

               नारी की झाँई परत, अंधा होत भुजंग |

            कबीरा तिन को कौन गति, नित नारी के संग||

Slogan 2:

यह काल नारियों के लिए सबसे बदतर अथवा अवनति का काल माना जाता है। इस प्रकार इस काल में नारियों के सभी प्रकार की स्वतंत्रता नष्ट हो गये वे सिर्फ एक दास रूप में अपना जीवन व्यतीत करने लगी। नारियों की ऐसी अवस्था पर गुप्तजी ने भी अपनी भावना को निम्न पंक्तियों में प्रकट किया है-

          अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी |

            आंचल में है दूध और आंखों में पानी ||

 आधुनिक काल में बेटियों की स्थिति

आधुनिक काल में अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात कुछ अंग्रेजो के द्वारा चलाई गई शिक्षा-दिक्षा से बेटियों को कुछ स्वतंत्रता मिली। इस काल में महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय तथा महर्षि दयानंद जी ने समाज सुधारने की दिशा में महान कार्य किए जैसे विधवाओं का पुनर्विवाह शुरू किया, स्त्रियों की शिक्षा पर जोर दिया, बाल विवाह पर रोक लगाया तथा सती प्रथा के लिए कानून भी लाए इसके बाद सती प्रथा का अंत हुआ। बाद में गांधी जी ने भी स्त्रियों के स्थिति सुधारने में बहुत से कार्य किए। पंत जी ने नारियों की दीन दशा को देखकर अपना आक्रोश कुछ इस प्रकार प्रकट करते हैं-

“मुक्त करो नारी को मानव 

चिर बंदिनी नारी को |”

आज के युग में बेटियों को अधिकार तो बहुत प्राप्त हैं लेकिन वे जब रहेंगी तब न इन अधिकारों का उपभोग कर पाएंगी। आज के समय में नारियों कुछ भी कर सकती हैं वह किसी भी पद पर आसीन हो सकती हैं धनोपार्जन कर सकती हैं तथा आज हर जगह पर बेटियां अध्यापिका है, डॉक्टर है, इंजीनियर है, वैज्ञानिक है, वकील है, जज हैं, अधिकारी हैं और यहां तक कि चांद पर भी जा चुकी है परंतु यह सभी उपलब्धियाँ उन लोगों के द्वारा कभी नहीं देखा जाती अथवा समझा जाती जो बेटियों का अपमान करते हैं तथा उन्हें जन्म लेने से पहले ही उन्हें कोख में मार देते हैं। 

 बेटियों की शैक्षणिक समस्या

शिक्षा और संस्कार ही मनुष्य को जानवरों से अलग करते है और इस शिक्षा के पुरुष हो या स्त्री दोनों ही हकदार हैं।  पुरातन काल में तो बेटियों को शिक्षा मिलती थी परंतु मध्यकाल में बेटियों को विद्यालय भेजा जाना संभव नहीं था अतः वह घर पर ही रह कर जो पढ़ पाती थी वही उनकी विद्या होती थी। पुरातन काल में जो शिक्षा बेटियों को मिलती थी वह बहुत ही उच्च शिक्षा में होती थी जिसके कारण उस काल की स्त्रियां विदुषी हुआ करती थी।

मध्यकाल में विदेशी आक्रमणकारियों की वजह से कुप्रथा का जन्म हुआ जिससे इस काल की बेटियां अंधविश्वासी और कुछ हद तक विवेक हीन भी हो गई थी। इस काल से ही बेटियों में शिक्षा का स्तर गिरने लगा था।

आजादी के इतने सालों के पश्चात भी देश में बेटियों को पूर्ण रूप से निरक्षर है। अब भारत सरकार इस ओर ध्यान देकर बेटियों की स्थिति में सुधार लाने की कोशिश कर रही है उनकी समस्या का निवारण करने के लिए विशेष रूप से संविधान के अंदर स्पष्ट निर्देश भी दिए गए हैं।

संविधान के द्वारा बेटियों को प्रदान कुछ विशेषाधिकार

स्वतन्त्रता के बाद भारत में जब संविधान का निर्माण हुआ तो संविधान में कुछ अधिकार बेटियों को मिले हैं जैसे अनुच्छेद 14 तथा 15 में जिसमें भारत में रहने वाली किसी भी व्यक्ति को लैंगिकता के आधार पर भेदभाव न करने का अधिकार प्राप्त है।

हिंदू उत्तराधिकार नियम 1956 में लड़के तथा लड़कियों के मध्य भेदभाव ना करके दोनों को समान रूप से उत्तराधिकारी बनाया जाएगा। हिंदू विवाह अधिनियम 1956 में विशेष आधारों पर विवाह करने की अनुमति अभी अब नहीं दी जाती है तथा दहेज की प्रथा को समाप्त करने के लिए इससे अवैध घोषित करते हुए सजा भी देने का प्रावधान है तथा सजा देने का प्रावधान लेने तथा देने दोनों के ऊपर ही लागू होगा। दहेज पर कानून 1961 में ही आ गया था पूर्णविराम बेटियों को विभिन्न स्तरों पर आरक्षण देने की बात हो तो रही है परंतु अभी तक यह व्यवस्था अपनाई नहीं गई है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  योजना का उद्देश्य 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के कुछ उद्देश्य बहुत महत्वपूर्ण है जैसे बेटियों के प्रति जो मानसिकता समाज में है तथा रूढ़िवादी मानसिकता में परिवर्तन लाना है। शिक्षा सभी को जरूरी है फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की दो लड़के ही पढ़ाई क्यों करें या अधिकार लड़कियों को भी है कि वह विद्यालय जाकर अच्छी से अच्छी शिक्षा प्राप्त करें।

 बेटियों की दुर्दशा के कारण

आज के तकनीकी क्षेत्र वाली दुनिया में सभी अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए जीवन जीते हैं इसी कारण भारत जैसे देश में बेटियों की दशा बहुत ही सोचनीय है वह दयनीय हो गई है। बेटियों की इस स्थिति का जिम्मेदार कोई एक या दो आदमी नहीं बल्कि पूरा का पूरा समाज है। क्योंकि आजकल लोग बेटी में बहुत भेदभाव करते हैं किसी भेदभाव के कारण ही भारत के कई राज्यों में यह आलम है किन राज्यों के युवाओं को शादी नहीं हो पा रही है उन्हें दूसरे राज्यों में जाकर शादी करनी पड़ रही है भेदभाव के भी कुछ कारण निम्न है:-

 लैंगिग भेदभाव:- लैंगिक भेदभाव का अर्थ है कि आज के समय में अधिकतर परिवार यह चाहते हैं कि उनके घर में बैठे ही पैदा हो बेटियां ना हो। लेकिन जब यह मानसिकता रखते हैं तो शायद वे यह भूल जाते हैं कि सिर्फ बेटे से ही परिवार नहीं चलता अगर सब की यही सोच हो जाए कि उन्हें सिर्फ बेटा चाहिए तो वह बहू कहां से लाएंगे बहन कहां से लाएंगे मां कहां से लाएंगे कुछ लोग की एबी मानसिकता है कि बेटे E1 चलाते हैं बेटियां नहीं इस कारण से भी लैंगिक भेदभाव पड़ता है हमें यह सभी भेदभाव को नष्ट करना होगा।

कन्या भ्रूण हत्या:- लैंगिक भेदभाव के कारण लोगों की मानसिकता कुछ इस कदर खराब है कि लोग अपने बेटियों को जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं अर्थात उन्हें उनकी मां के पेट में ही मार दिया जाता है, लोग यह सब सिर्फ एक बेटे के लिए करते हैं। समाज में इसीलिए बेटियों की संख्या में इतनी गिरावट आई है परंतु सरकार ने इस समस्या को भागते हुए गर्भ में लिंग की जांच करने वाले तथा कराने वाले दोनों को दंड तथा जुर्माने का प्रावधान बनाया है।

 शिक्षा का अभाव:- शिक्षा का अभाव भी बेटियों के अस्तित्व पर खतरा है क्योंकि जब माता-पिता अनपढ़ होते हैं तो किस सिर्फ यही सोचते कि बेटे सब कुछ होते हैं बेटियां सिर्फ बोझ होती है बेटे ही सब कुछ कर सकते हैं तथा कुछ लोगों की बात में भी आ जाते हैं कि बेटे ही सर्वश्रेष्ठ है परंतु ऐसा नहीं है एक बार बेटी को मौका मिले तो वह यह सिद्ध कर सकती हैं और उन्होंने यह सिद्ध करके भी दिखाया है। आज आप देख भी सकते हैं जब जब बेटियों को मौका मिला उन्होंने अपने आप को हर चुनौती में खड़ा उतारा है।

 मानसिकता:- किसी मनुष्य को मनुष्य बनाने में मानसिकता सबसे जरूरी  है। अगर मानसिकता अच्छी है तो मनुष्य मनुष्य है अगर मानसिकता खराब है तो मनुष्य जानवर के भांति है। भारत के लोगों की मानसिकता आप इसी प्रकार से देख सकते हैं कि जहां देवियों की पूजा होती है देवियों के त्योहार दशहरा दिवाली मनाई जाती है उसी देश में उस देवी के स्वरूप को जिंदा नहीं रहने दिया जाता है लोग बेटियों को पराया धन मानते हैं उनके ऊपर पैसे खर्च करना व्यर्थ मानते हैं इन्हीं सब कारणों की वजह से आज भारत में बेटियों की दशा बहुत हो चुकी है हमें अपने देश की छवि बदलनी है तो हमें सभी प्रथाओं दहेज इत्यादि को जल्द से जल्द इसे रोकना होगा।

 दहेज प्रथा:- भारत में दहेज प्रथा एक बहुत ही बड़ी समस्या है और यह बेटियों की इस दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण भी है क्योंकि आज के समय में लोग सोचते हैं कि अगर बेटियां होंगी तो हमें उनकी शादी में दहेज तथा अन्य बहुत से सारे खर्चे करने पड़ेंगे लेकिन अगर बेटा हुआ तो हमें दहेज देने के बजाय दहेज मिलेगा तथा खर्च भी ज्यादा नहीं होंगे। इसी कारण हमें इस प्रथा का पूर्ण रूप से अंत करना होगा।

 बेटियों की दुर्दशा का प्रभाव:-

बेटियों की दुर्दशा का प्रभाव आज भारत में कुछ इस प्रकार देखा जा सकता है जो कि निम्न है:

 जनसंख्या वृद्धि:- आज के समय में लोगों की लड़के की चाहत में अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं और जिस तरह से जनसंख्या वृद्धि हो रही है उस प्रकार से विकास भी नहीं हो पा रहा है। वैसे ही हमारा देश पिछड़ा हुआ है अगर जनसंख्या में इसी प्रकार वृद्धि होती रहेगी तो विकास भी नहीं होगा तथा देश और पिछड़ जाएगा। जिस प्रकार से जनसंख्या बढ़ रही है कुछ ही सालों में हम चीन को पीछे छोड़ते हुए पहले नंबर पर पूरे विश्व जनसंख्या के मामले में स्थापित हो जाएंगे जो एक संदेश है कि हम विकास की ओर नहीं जा रहे हैं क्योंकि जिस प्रकार की व्यवस्था भारत में उससे नहीं लगता कि भारत इतनी अधिक जनसंख्या में विकास कर पाएगा।

  •  बेटियों के जन्म दर में कमी आना:- अगर लोग आज भी इसी तरह लड़के तथा लड़कियों में भेदभाव करेंगे तो बेटियों की जन्म दर और भी ज्यादा गिर जाएगी आंकड़ों के अनुसार 1991 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर 945 लड़कियां हैं कि जबकि 2001 में लड़कियों की यह संख्या घटकर 927 रह गई तथा आधुनिक जनगणना 2011 के अनुसार प्रति 1000 लड़कों की तुलना में सिर्फ 919 लड़कियां ही रह गए लेकिन इस समय 2019 में प्रति 1000 लड़कों पर 930 लड़कियां है पूर्ण रूप से इसको देखा जाए तो भारत में 48.20% लड़कियां हैं पूरी जनसंख्या की तथा शेष 51.80 प्रतिशत लड़के हैं पूरी जनसंख्या में है।अगर यह सब अभी नहीं रोका गया तो यह स्थिति और भी खराब हो सकती है। आज भी भारत के कुछ राज्यों में लड़कियों की जनसंख्या लड़कों से काफी कम है।

 

  • शोषण तथा बलात्कार की घटनाओं का बढ़ना:- आज हमारा समाज पुरुष प्रधान है जो हमेशा ही अपना प्रभुत्व दिखाता है तथा लड़कियों के शोषण से बाज नहीं आते। आप इन शोषण तथा बलात्कार जैसी घटनाओं को समाचार में देख सकते हैं। कुछ जगहों पर यह भी एक कारण है लड़की की जन्म दर में कमी आने का। तथा इसका प्रभाव आप कुछ इस प्रकार देख सकते हैं जैसे जब भी महिला समाज अपनी कुछ प्रमुख बातों को मुद्दा बनाकर उठाती तो पुरुष प्रधान उन्हें दबाने की कोशिश करता है।
  • देश के विकास की गति धीमी होना:जैसा कि स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि “जिस देश में नारी का सम्मान नहीं होता उस देश का विकास नहीं होता” शायद सही था क्योंकि हम इसे साक्षात देख सकते हैं क्योंकि आज हमारे देश में आधी आबादी महिलाओं की है जिसमें से अधिकतर महिलाएं अनपढ़ हैं। जब ऐसे ही हालात रहेंगे तो देश का विकास कैसे होगा क्योंकि जब माँ अनपढ़ रहेगी तो बच्चों को क्या शिक्षा देगी क्योंकि यह कहा गया है कि माँ ही अपने बच्चों की प्रथम गुरु होती है। अगर हमें देश का विकास करना है तो महिलाओं की जन्म दर में वृद्धि करनी होगी तथा उन्हें शिक्षित भी करना होगा।

 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निष्कर्ष

बेटियों की दुर्दशा को सुधारने के उपाय:- बेटियों की इस दुर्दशा के लिए कहीं ना कहीं हम आप भी जिम्मेदार हैं क्योंकि कहीं भी अगर लड़कियों पर अत्याचार होता है तो हम शांत रहकर उसे देखते हैं लेकिन कुछ करते नहीं फिर बाद में हम उस पर बुद्धिजीवी की तरह अपने विचार रखते हैं कि नहीं उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था यह सब कारण है कि देश में विकास नहीं हो रहा है परंतु हम खुद को नहीं देखते जो उसे चुपचाप देख रहे थे। अगर हम अत्याचार तथा बेटियों की इन सभी दुर्दशा के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते तो हमें कोई अधिकार नहीं है किसी पर ऐसे लांछन लगाने का क्योंकि हम खुद भी उस पाप के भागीदार बन रहे हैं बस फर्क इतना है कि वह उस अत्याचार को दिखाकर कर रहा है और हम चुप रह कर अपने मन में उस पाप के भागीदार हो रहे हैं।

हमें इन सभी दुर्दशा को सुधारने के लिए इन सभी बातों पर कार्य करना होगा-

  •  लिंग जांच पर रोक:- लिंग जांच या अभी एक सबसे बड़ा कारण है लड़कियों की दुर्दशा का क्योंकि आज के इस आधुनिक युग में बहुत सी ऐसी मशीनें उपलब्ध है जिन से गर्भ में ही लिंग की जांच हो जाती है जिससे पता चल जाता है कि गर्भ में पलने वाला लड़का है या लड़की अगर लड़की है तो उसे गर्भ में ही मार दिया जाएगा और लड़का है तो उसे जन्म दिया जाएगा यही सब कारण है कि लड़कियों के जन्म दर में कमी आ जाती है हमें इस लिंग जांच पर रोक लगानी होगी।
  •  बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देना:- हमें अगर नारियों की दशा में सुधार करना है तो हमें बेटियों की शिक्षा पर भी जोड़ देना होगा क्योंकि तभी इनकी दशा में सुधार होगा जब नारियां शिक्षित होंगी वे अपने सभी अधिकारों को भी जानेंगे तथा सभी नारी समाज को कल्याण के लिए काम करेंगे, महिलाएं शिक्षित होंगी तो अपने पेट में पलने वाले लड़कियों की हत्या पर रोक लगा सकती है, जब महिलाएं शिक्षित होंगी तो बेटियों की जन्म दर में वृद्धि भी हो सकती है।
  • लड़कियों के प्रति भेदभाव का रोकथाम:- आज हमें से आदमी की उम्र में जी रहे हैं जिसमें कल्पना चावला जैसी महिला चंद्रमा पर कदम रख कर इतिहास रच चुकी हैं तथा जहां किरण बेदी जैसी महिलाएं भारत की पहली महिला आईपीएस बन चुकी है और भी उदाहरण है आपको हर जगह मिल जाएंगे पर इसी युग में एक दूसरा पक्ष भी है जहां लोग महिलाओं से इतना ना करते हैं कि उन्हें अपने घर में जन्म देने से भी कतराते हैं हमें इस भावना को बदलते हुए लड़कियों के प्रति भेदभाव का रोकथाम करना होगा।

Official Website:  https://wcd.nic.in/schemes/beti-bachao-beti-padhao-scheme

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