सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
(Sumitranandan Pant Biography in Hindi) जीवन परिचय:- कोमल एवं सुकुमार भावना के कवि सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई 1990 को प्रकृति की सुरम्य क्रीड़ा स्थल कुर्मांचल प्रदेश के अंतर्गत अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में हुआ था| इनके पिता का नाम गंगादत्त पंत तथा माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था| यह अपने माता पिता की सबसे छोटी संतान थे|
जन्म के 6 घंटे बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया अतः यह जीवन भर मात्र स्नेह से वंचित रहे| इनका बचपन का नाम गुसाईंदत्त तथा बाद में उन्होंने अपना नाम सुमित्रानंदन रख लिया| पंत जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही पाठशाला में हुई| वहां से यह अल्मोड़ा के राजकीय स्कूल में प्रविष्ट हुए| तत्पश्चात वाराणसी के जयनारायण हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की| सन 1916 में सुमित्रानंदन पंत देवप्रयाग के म्यूर सेंटर कॉलेज से बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त की किंतु सन 1921 में असहयोग आंदोलन आरंभ होने के कारण परीक्षा ना दे सके तथा इनकी शिक्षा सदा के लिए समाप्त हो गई। तत्पश्चात यह स्वतंत्र रूप से अध्ययन करने लगे| इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी और तथा बांग्ला का गंभीर अध्ययन किया।
उपनिषद, दर्शन, आध्यात्मिक तथा साहित्य की ओर भी इनकी रूचि रही। संगीत से ने पर्याप्त प्रेम था। जीवन यापन के लिए परिवार वालों से अधिक सहायता न मिलने के कारण इन्हें नौकरी की खोज करनी पड़ी। इन्होंने ‘रूपाभ’ पत्रिका का संपादन किया तथा मद्रास में रहकर उदयशंकर के चलचित्र ‘कल्पना’ का कार्य किया। इसी बीच पंत जी रविंद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, अरविंद घोष के संपर्क में आए और उनके महान व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित हुए।
सन 1950 ईस्वी में यह ऑल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और सन 1957 ईस्वी तक इससे संबद्ध रहे गुड़गांव, पंत जी को ‘कला और बूढ़ा चांद’ नामक काव्य ग्रंथ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजागया था, ‘लोकायतन’ काव्य पर सोवियत भूमि पुरस्कार और उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कृत हुए । ‘चिदम्बरा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 1961 ईस्वी में भारत सरकार ने पंत जी को पद्म भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। प्रकृति का यह सुकुमारकवि 28 दिसंबर सन 1977 ईस्वी को परलोकवासी हो गया।
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सुमित्रानंदन पंत जी का साहित्यिक परिचय:-
पंत जी गंभीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के प्रति आस्थावान एक एेस सहज कुशल शिल्पी थे, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय के नवस्वपनों की सर्जना की| उन्होंने सौंदर्य को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया इसलिए इन्हें सौंदर्य का कभी भी कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत जी की कुछ रचनाएं:-
पंत जी ने अनेक काव्य ग्रंथ लिखे हैं| कविताओं के अतिरिक्त इन्होंने कहानियां, उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं, किंतु कवि रूप में यह अधिक प्रसिद्ध है। पंत जी के कवि रूप के विकास के तीन सोपान है-
1- छायावाद और मानवतावाद, 2- प्रगतिवाद या मार्क्सवाद, 3- नवचेतनावाद|
1- पंत जी के विकास में प्रथम सोपान (जिसमें छायावादी प्रवृत्ति प्रमुख थी) किस सूचक रचनाएं हैं- वीणा, ग्रंथि, पल्लव और गुंजन।
2- द्वितीय सोपान के अंतर्गत तीन रचनाएं आती है- युगांत, युगवाणी और ग्राम्या|
3- मार्क्सवाद की भौतिक स्थूलता पंत जी के मूल संस्कारी कोमल स्वभाव के विपरीत थी| इस कारण व पुनः अंतर्जगत् की ओर मुड़े। इस काल की प्रमुख रचनाएं हैं- स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, उत्तरा, अतिमा, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, किरण, पतझर- एक भाव क्रांति और गीतहंस। इस काल में कवि पहले विवेकानंद और रामतीर्थ से तथा बाद में अरविंद दर्शन से प्रभावित होता है|
सन 1955 ईस्वी के बाद पंत जी की कुछ रचनाओं(कौवे, मेंढक आदि) पर प्रयोगवादी कविता का प्रभाव है।
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काव्यगत विशेषताएं:-
छायावादी कवियों में पंत जी सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। छायावाद के सभी प्रमुख विशेषताएं पंत जी के काव्य में विद्यमान है| पंत जी ने प्राकृतिक दृश्यों में अनंत की सत्ता के दर्शन किए हैं|
ना जाने नक्षत्रों से कौन,
निमंत्रण देता मुझको मौन?
छायावाद तथा रहस्यवाद से होते हुए पंत जी प्रगतिवाद में आ पहुंचते हैं| वह किसान मजदूरों की दयनीय दशा देखकर कराह उठते हैं। कला त्रस्त तथा सभ्यता संस्कृति से बहिष्कृत भारती ग्राम उन्हें नर्क सा लगता है-
यह तो मानव-लोक नहीं रे, यह नर्क अपरिचित|
यह भारत का ग्राम? सभ्यता-संस्कृति से निर्वासित|
झाड़-फूंक के विवर, यही क्या जीवन शिल्पी के घर?
कीड़ों से रेंगते कौन थे? बुद्धि-प्राण नारी-नर|
पंत जी का जन्म सुरम्य प्रकृति की गोद में हुआ था अतः वे प्राकृतिक सौंदर्य के अनन्य प्रेमी हैं। प्रकृति के प्रति उनमें अगाध स्नेह है। कवि ने अनेक स्थानों पर प्रकृति को मानव का रूप देकर उसका मानवीकरण किया है। ‘नौका विहार’ में गंगा जी का एक चित्र दिखाया गया है जो कि निम्न प्रकार है-
“ सैकत शैया पर दुग्ध धवल,
तवंगी गंगा, ग्रीष्म विरल,
लेटी है श्रांत, क्लान्त निश्चल|”
छायावादी कवि पंत ने नारी के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण अपनाया है। छायावादी काव्य में नारी वासना की पूर्ति साधना ना होकर माँ, सहचरी, प्रेयसी आज रूपों में व्यक्त हुई है| पंत जी युग-युग से उपेक्षित नारी को सदियों का कारा से मुक्त करने की आवाज बुलंद करते हैं|
पंत जी को अपने देश से स्वाभाविक प्रेम था। अतः उसकी वर्तमान हीन दशा को देखकर उनका ह्रदय दुखी है| देखिए-
“भारत माता ग्राम वासिनी|
तीस कोटी संतान नग्न तन
अर्ध क्षुधित शोषित, निर्वस्त्र जन
मूढ़ असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक, तरूतल निवासिनी|”
‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता में पंत जी ने देश की प्राचीन समृद्धि की तुलना उसकी वर्तमान दुर्दशा से प्रतीकात्मक भाषा में की है।
पंत जी के काव्य में गाँधी दर्शन का स्वरूप देखने को मिलता है जैसे -‘बापू के प्रति कविता’ में पंत जी के वर्णनों में चित्रात्मक का के दर्शन होते हैं। दृश्यों के चित्र प्रस्तुत करने में भी कुशल है।
पंत जी की भाषा मूलतः अति सुकुमार और श्रुति मधुर है। वे ज्यादातर शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग करते हैं| वह परिमार्जित, सस्वर, कोमल और प्रवाहमय है। आपको खड़ी बोली को कोमल और संगीतमय बनाने का श्रेय है| इनकी भाषा पर संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिकार अवश्य है तथापि कवि ने उसकी कोमलता, मधुरता का सदैव ध्यान रखा है| आपकी भाषा भावनुसारिणी है| विषय के अनुकूल उसमें माधुर्य और ओज गुण का समावेश किया गया है। मुहावरों का प्रयोग परिवर्तित रूप में मिलता है।
पंत जी की शैली में छायावादी काव्य शैली की समस्त विशेषताएं हैं (लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता,ध्वन्यात्मकता, चित्रात्मकता आदि) प्रचुर मात्रा में मिलता है| पंत जी की रचनाओं में तुकांत, अतुकांत, स्वच्छंद और नवीन सभी प्रकार के छंद पाए जाते हैं| उनके छंदों की विशेषता लय है| उनके संगीतात्माता से परिपूर्ण छंदों में स्वाभाविक गति और प्रवाह है। आपके काव्य में उपमा, श्लेष, अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण, विपर्यय, ध्वनि-चित्रण, असंगति, अतिशयोक्ति आदि अलंकारो का स्वाभाविक एवं सुंदर प्रयोग हुआ है| पंत जी छायावादी कवि थे| अतः छायावादी कविता की विशेषताओं, एवं प्रतीकात्मकता के दर्शन उनकी रचनाओं में होते हैं|
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साहित्य में स्थान:- पंत जी छायावाद के यशस्वी कवि हैं। हिंदी साहित्य में प्रकृति का चित्रण करने वाले कवियों में पंत जी का स्थान बहुत ऊंचा है| वे प्रकृति के सुकुमार कवि हैं| उन्होंने प्रकृति के सुकुमार, स्निग्ध और सुंदर रूप को ही विशेषतः चित्रित किया है| उनकी सौंदर्य-भावना अनुकरणीय है। भाषा, भाव, कल्पना आदि सभी दृष्टिओं से पंत जी छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद के उन्नायक कवि हैं। उनकी कविता और शैली मौलिक है। वे प्रतिभाशाली सफल कवि हैं और हिंदी साहित्य में उनका स्थान महत्वपूर्ण है|
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